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नज़्म
बे-तकल्लुफ़ तिफ़्ल-ए-शोख़-ओ-शैख़-ए-शैब-ओ-मर्द-ओ-ज़न
आज मशग़ूल-ए-तरब हैं लुत्फ़-ए-बाहम के लिए
नवाब सय्यद हकीम अहमद नक़्बी बदायूनी
नज़्म
पड़ते ही निगाह-ए-साइक़ा-ए-ज़न जल उट्ठेगा हर नज़्म-ए-कुहन
ऐ सुब्ह-ए-वतन ऐ सुब्ह-ए-वतन
साग़र निज़ामी
नज़्म
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न
मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ये जवानी, ये परेशानी, ये पैहम इज़्तिराब
बार-हा उलझन में दौड़ा हूँ सू-ए-जाम-ए-शराब
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
ब-सू-ए-नौहा-आबाद-ए-जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
निकल कर आ रही है इक गुलिस्तान-ए-तरन्नुम से
नून मीम राशिद
नज़्म
जीत का पड़ता है जिस का दानों वो कहता है यूँ
सू-ए-दस्त-ए-रास्त है मेरे कोई फ़र्ख़न्दा-पय
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग
उसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ