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नज़्म
अपने दुश्मनों के रुमाल कुत्तों को सुँघा सकते हैं
सोई हुई मुर्ग़ाबियाँ आसानी से पकड़ सकते हैं
ज़ीशान साहिल
नज़्म
इक ऊँची मेज़ पे लेटे वक़्त को क्लोरोफ़ार्म सूँघा कर
उस के एक एक उज़्व को काटा
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
नज़्म
है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद
कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो हज़र बे-बर्ग-ओ-सामाँ वो सफ़र बे-संग-ओ-मील
वो नुमूद-ए-अख़्तर-ए-सीमाब-पा हंगाम-ए-सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस के परवानों में मुफ़्लिस भी हैं ज़रदार भी हैं
संग-ए-मरमर में समाए हुए ख़्वाबों की क़सम
शकील बदायूनी
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे