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नज़्म
दिखा वो हुस्न-ए-आलम-सोज़ अपनी चश्म-ए-पुर-नम को
जो तड़पाता है परवाने को रुलवाता है शबनम को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आओ मिल कर इंक़लाब-ए-ताज़ा-तर पैदा करें
दहर पर इस तरह छा जाएँ कि सब देखा करें
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नौ-ए-इंसाँ में ये सरमाया ओ मेहनत का तज़ाद
अम्न ओ तहज़ीब के परचम तले क़ौमों का फ़साद
साहिर लुधियानवी
नज़्म
घुपे हुए हैं इतने नश्तर जिन की कोई तादाद नहीं
कितनी बार हुई है हम पर तंग ये फैली हुई ज़मीं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
याद-ए-अय्याम-ए-सलफ़ से दिल को तड़पाता हूँ मैं
बहर-ए-तस्कीं तेरी जानिब दौड़ता आता हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कितना गहरा है मोहब्बत के तक़ाज़ों का तज़ाद
मैं तो कहता हूँ कि तुम प्यार से झोली भर दो