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नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
नीम-जाँ ताएरों को जगाते रहे
और गुज़रे ज़माने के पीरों फ़क़ीरों की कोई न कई करामत सुनाते रहे
हारिस ख़लीक़
नज़्म
फिर भी देव की क़ैद से छुट कर
दूर हरे खेतों, नीले दरियाओं, शफ़क़ी बादलों, गाते ताएरों
नाहीद क़ासमी
नज़्म
सेहन-ए-गुलशन की फ़ज़ाएँ फिर मोअ'त्तर हो गईं
ताएरों के सुन के नग़्मे ख़ुद भी शाख़ें सो गईं
साक़िब कानपुरी
नज़्म
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल