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नज़्म
तिरे इल्म ओ मोहब्बत की नहीं है इंतिहा कोई
नहीं है तुझ से बढ़ कर साज़-ए-फ़ितरत में नवा कोई
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दोस्त मिला था तुझ को कैसा हैफ़ इतना भी याद नहीं
जान फ़िदा करता था जिस पर दिल में उस की याद नहीं
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
आल-ए-अबू-तालिब के क़दमों के निशाँ
इंसानियत को उस की मंज़िल का पता देते रहे हैं ता-अबद देते रहेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
हम उन को देते हैं बे-जान और ग़लत तालीम
मिलेगा इल्म-ए-जिहालत-नुमा से क्या उन को