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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर डाली है
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
एक अनार का पेड़ बाग़ में और घटा मतवारी थी
आस-पास काले पर्बत की चुप की दहशत तारी थी
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
बहनों पे भी तारी है क़िस्मत का जो लिक्खा है
इक माँ है जो पेड़ों से बातें किए जाती है
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
किस में जुरअत है कि इस राज़ की तशहीर करे
सब के लब पर मिरी हैबत का फ़ुसूँ तारी है