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नज़्म
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
हर इक जानिब मचा कुहराम-ए-दार-ओ-गीर बिस्मिल्लाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बे-शुमार आँखों को चेहरे में लगाए हुए इस्तादा है तामीर का इक नक़्श-ए-अजीब
ऐ तमद्दुन के नक़ीब!
मीराजी
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
सब से पहले इश्क़ में उंगली ही पकड़ी जाए है
रफ़्ता-रफ़्ता फिर कहीं पहुँचे का नंबर आए है
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
रहम ऐ नक़्क़ाद-ए-फ़न ये क्या सितम करता है तू
कोई नोक-ए-ख़ार से छूता है नब्ज़-ए-रंग-ओ-बू