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नज़्म
वो तख़्त-ए-सल्तनत-ओ-बारगाह-ए-सुल्तानी
कि जिस में बैठते थे आ के ज़िल्ल-ए-सुब्हानी
मोहम्मद अली तिशना
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तख़्त-ए-सुल्ताँ क्या मैं सारा क़स्र-ए-सुल्ताँ फूँक दूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हाँ किस लिए ख़ामोश है ओ तख़्त-ए-जिगर-रेश
किस ग़म में सियह-पोश है क्या सोग है दर-पेश
इस्माइल मेरठी
नज़्म
ग़ौर कीजे कैसे इस तालीम ने पाया रिवाज
किस लिए हामी थे इस के साहिबान-ए-तख़्त-ओ-ताज