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नज़्म
वो हर एक हाल में बस्ता-लब न किसी से शिकवा न कुछ तलब
ग़म-ए-'आशिक़ी तिरी ख़ैर हो तुझे यादगार बना दिया
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
नज़्म
दस्त-ए-दरयूज़ा-गर-ओ-दरवेश ख़ाली है अगर अपनी अना से
तो उसे क्या ख़ौफ़ माया से जो कल तक