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नज़्म
अपने गालों पर तमाँचा जड़ के ख़ुश हो जाऊँ में
आज रौशन क़ुमक़ुमों के बीच जागा ये शुऊ'र
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले
तमांचे मौज के खाते थे जो बन कर गुहर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर
कौन तूफ़ाँ के तमांचे खा रहा है मैं कि तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अफ़्लास-ज़दा दहक़ानों के हल बैल बिके खलियान बिके
जीने की तमन्ना के हाथों जीने के सब सामान बिके
साहिर लुधियानवी
नज़्म
यही शायद उस ख़ाक को गिल बना दे!
तमन्ना की वुसअत की किस को ख़बर है जहाँ-ज़ाद लेकिन
नून मीम राशिद
नज़्म
न उट्ठा जज़्बा-ए-ख़ुर्शीद से इक बर्ग-ए-गुल तक भी
ये रिफ़अत की तमन्ना है कि ले उड़ती है शबनम को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
मुझ को रातों की सियाही के सिवा कुछ न मिला