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नज़्म
तेरा ज़ाहिर ख़ुशनुमा है तेरा बातिन है सियाह
हर अदा तेरी मुकम्मल दावत-ए-जुर्म-ओ-गुनाह
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
किश्वर नाहीद
नज़्म
जो अपने नादीदा पिदर की हिर्स ओ गुनह के पछतावे को
अपने अपने कंधे पर लादे फिरते हैं
इफ़्तिख़ार आज़मी
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
और उन्हें इस तरह के गुनाहों की तर्ग़ीब दी
जिस तरह के गुनाहों से मीलाद-ए-आदम हुआ था