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नज़्म
यक़ीनन इंक़लाब-ए-हिन्द होगा ऐ 'सुख़न' होगा
हमें ज़ेबा है अपने घर में झंडा सुर्ख़ लहराना
टीका राम सुख़न
नज़्म
फिर यक़ीं आए 'सुख़न' ये इंक़िलाब है ज़िंदाबाद
हिंदू-ओ-मुस्लिम का हाँ अब रंग लाया है जिहाद
टीका राम सुख़न
नज़्म
वो जाँ-फ़रेबी-ए-इज़हार-ए-दिल-नवाज़-ए-सुख़न
जबीं पे वुसअ'त-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की तहरीरें
मुस्लिम शमीम
नज़्म
ऐ 'अज़ीज़-ए-महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न तुझ को सलाम
ऐ सबा-ए-सुब्ह-दम ज़ेब-ए-चमन तुझ को सलाम
सफिया अंकोलवी
नज़्म
मुझे रंगून से जब दावत-ए-शेर-ओ-सुख़न आई
तबीअत फ़ासले और वक़्त के चक्कर से घबराई
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
रहे न मुसहफ़-ए-हस्ती कुदूरतों से ग़लीज़
मताअ'-ए-फ़े'ल-ओ-सुख़न लग़्ज़िशों से पाक रहे