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नज़्म
क़यास अपना किया उन पर जो मैं ने ऐ शरीफ़ इंसाँ
नज़र आया मुझे उन में कोई ख़ंदाँ कोई गिर्यां
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
थे हकीम-ए-शर्क़ से शैख़-ए-मुजद्दिद हम-कलाम
गोश-बर-आवाज़ सब दानिश-वरान-ए-इल्म-ओ-दीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
ख़्वाजा-ए-कौनैन की चश्म-ए-करम के फ़ैज़ से
मेरा हर हर शे'र 'शोरिश' पारा-ए-इल्हाम है
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
यहाँ के लोगों को हम इतना साफ़ देखते हैं
कि जैसे शैख़-ए-अदब ज़ेर-ए-नाफ़ देखते हैं