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नज़्म
चौराहों पर खड़े हुए बकरों के हैं जो ग़ोल
तू उन के मुँह को खोल के दाँतों को मत टटोल
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मैं अपनी पोरों से पूरा चेहरा टटोल के ख़ुद से पूछता हूँ
कहाँ हैं होंटों के सुर्ख़ कोने
क़ासिम याक़ूब
नज़्म
तू का'बे में न ढूँढ सका मैं ने दिल में लिया टटोल
मुझे काफ़िर काफ़िर छेड़ न वे तू आशिक़ आशिक़ बोल
सदा अम्बालवी
नज़्म
नाफ़ा-ए-मुश्क-ए-ततारी बन कर लिए फिरी मुझ को हर-सू
यही हयात-ए-साइक़ा-फ़ितरत बनी तअत्तुल कभी नुमू