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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब कोई घड़ी पल सा'अत में ये खेप बदन की है कफ़नी
क्या थाल कटोरी चाँदी की क्या पीतल की ढिबिया-ढकनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
झड़ियों की मस्तियों से धूमें मचा रहे हैं
पड़ते हैं पानी हर जा जल-थल बना रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि
किसी ने मिरे सर पे फूलों भरा थाल उल्टा दिया
परवीन शाकिर
नज़्म
कुछ तबले खटके ताल बजे कुछ ढोलक और मुर्दंग बजी
कुछ झड़पें बीन रबाबों की कुछ सारंगी और चंग बजी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मँगवाए थाल गुलालों के भर डाले रंगों से मटके
फिर साँग बहुत तय्यार हुए और ठाठ ख़ुशी के झुर मटके
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मरकज़ रंगीं रानाई का चिकना तम्बू हलवाई का
ज़ीना ज़ीना ज़ीनत से धरा है थाल पे थाल मिठाई का