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नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
वही तो हैं जिन्हों ने मुझ को पैहम रंग थुकवाया
वो किस रग का लहू है जो मियाँ मैं ने नहीं थूका
जौन एलिया
नज़्म
जो मिस्री और के मुँह में दे फिर वो भी शक्कर खाता है
जो और तईं अब टक्कर दे फिर वो भी टक्कर खाता है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
चिल्ला ग़म ठोंक उछलता हो तब देख बहारें जाड़े की
तन ठोकर मार पछाड़ा हो और दिल से होती हो कुश्ती सी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ताकि रह-गीर और परदेसी कहीं ठोकर न खाएँ
राह से आसाँ गुज़र जाए हर एक छोटा बड़ा
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
वो ठोकर जिस से गीती लर्ज़ा-बर-अंदाम रहती है
वो धारा जिस के सीने पर अमल की नाव बहती है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
अगर रक्खूँ तो नाकारा निकम्मा कह के ये दुनिया
मुझे ठोकर लगा दे और ख़ुद आगे को बढ़ जाए