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नज़्म
ठुमक ठुमक के चले थे घरों के आँगन में
'अनीस' ओ 'हाली' ओ 'इक़बाल' और 'वारिस-शाह'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जो मूड हो तो सुनाएँ नामा ठुमक ठुमक कर बजाएँ तबला
गए वो इक रोज़ छत के ऊपर वहाँ चचा ने पतंग उड़ाई