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नज़्म
तिरे माथे का टीका मर्द की क़िस्मत का तारा है
अगर तू साज़-ए-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
लब-ए-लालीं पे लाखा है न रुख़्सारों पे ग़ाज़ा है
जबीं-ए-नूर-अफ़्शाँ पर न झूमर है न टीका है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तीखी नज़रें हों तुर्श अबरू-ए-ख़मदार रहें
बन पड़े जैसे भी दिल सीनों में बेदार रहें