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नज़्म
चिड़ियाँ न चहचहाएँ कल सोएँ हम दोपहर तक
बंद है बन का मदरसा कोई हमें जगाए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
मुझे तुम बंद कर दो तीरगी में या सलाख़ों में
परिंदा सोच का लेकिन ये ठहरा हो नहीं सकता
त्रिपुरारि
नज़्म
तू बंदा था मोहब्बत का मोहब्बत थी तिरे दिल में
समुंदर मौजज़न रहता था इस छोटे से साहिल में
मयकश अकबराबादी
नज़्म
एक इक तुक-बंद उस्तादों के मुँह आने लगा
लिख के सुब्ह-ओ-शाम नज़्में बे-तुकी से बे-तुकी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
टक ग़ाफ़िल दिल में सोच ज़रा है साथ लगा तेरे दुश्मन
क्या लौंडी बांदी दाई दवा क्या बंदा चेला नेक-चलन