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नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
निगाहों में उन्हें रक्खो उभरना है अगर तुम को
ख़यालों में उन्हें परखो सँवरना है अगर तुम को
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर एक ही रात का ज़ौक़ दरिया की वो लहर निकला
हसन कूज़ा-गर जिस में डूबा तो उभरा नहीं है!