aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ubhar"
हर सतर में मिरा चेहरा उभर आया होगाजब मिली होगी उसे मेरी अलालत की ख़बर
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों सेलौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
सौ ज़ख़्म उभर आएजब दिल को सिया हम ने
मगर लहू के दाग़ भी उभर गए ये क्या हुआइन्हें छुपाऊँ किस तरह नक़ाब ढूँढता हूँ मैं
जिस से छट जाए पुराना मैलउन के दस्त-ओ-पा फिर से उभर आएँ
बंद कमरे में जो ख़त मेरे जलाए होंगेएक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
मैं बच गई माँगर मेरे नक़्श उभर आते
रात भर जाग के लिक्खी हुई तहरीरों सेअब भी उन आँखों की तस्वीर उभर आती है
तेरा पैकर मिरी नज़रों में उभर आता हैकोई साअ'त हो कोई फ़िक्र हो कोई माहौल
इन्ही ज़र्रों से उभर आएँगे कितने मह-ओ-मेहरइसी आलम से सँवर जाएँगे आलम कितने
ये रसमसाते बदन का उठान और ये उभारफ़ज़ा के आईना में जैसे लहलहाए बहार
तुम्हारी नज़्मों तुम्हारी गीतों की चिलमनों से उभर रहा हैयक़ीन जानो
जगमगाता है अगर कोई निशान-ए-मंज़िलज़िंदगी और भी कुछ तेज़ क़दम चलती है
कहीं और उभर आती थींशक्ल खोते ही
उभर गई हैं वो चोटें दबी-दबाई हुईसुपुर्दगी ओ ख़ुलूस-ए-निहाँ के पर्दे में
वो साँवले-पन पर मैदाँ के हल्की सी सबाहत दौड़ चलीथोड़ा सा उभर कर बादल से वो चाँद जबीं झलकाने लगा
उभर रहे हैं फ़ज़ाओं में अहमरीं परचमकिनारे मश्रिक-ओ-मग़रिब के मिलने वाले हैं
गुलों की तरह गुलिस्ताँ में निखर लेंबनें हम भी सूरज गगन में उभर लें
तुझ को आया हूँ आज समझानेहैफ़ है तू अगर बुरा माने
गेंदों से माइल-ए-गुल-ए-बाज़ी हसीन हैंसर के उभार पर से दुपट्टे महीन हैं
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