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नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर एक ही रात का ज़ौक़ दरिया की वो लहर निकला
हसन कूज़ा-गर जिस में डूबा तो उभरा नहीं है!
नून मीम राशिद
नज़्म
क़ुल्ज़ुम-ए-हस्ती से तो उभरा है मानिंद-ए-हबाब
इस ज़ियाँ-ख़ाने में तेरा इम्तिहाँ है ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चिलमन जो गिराई बदली की मैदान का दिल घबराने लगा
उभरा तो तजल्ली दौड़ गई डूबा तो फ़लक बे-नूर हुआ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आहन की सलाबत में उभरा मा'सूम तसव्वुर नर्मी का
फूलों की लताफ़त में उमडा आहन बन जाने का जज़्बा