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नज़्म
ये जितना ख़ून भी अब तक बहा है मेरा अपना है
मुक़द्दस ख़ाक पर बिखरे हुए उधड़े हुए आ'ज़ा
इशरत आफ़रीं
नज़्म
फ़ाक़ों से है बे-होशी सी हर गाम पे चक्कर आते हैं
पैवंद-भरी कोहना सी रिदा पैवंद भी उधड़े जाते हैं
सरीर काबिरी
नज़्म
पर मुसीबत है मिरा अहद-ए-वफ़ा मेरे लिए
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
ज़रा देख उस को जो कुछ हो रहा है होने वाला है
धरा क्या है भला अहद-ए-कुहन की दास्तानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस अहद-ए-सियासत ने ये ज़िंदा ज़बाँ कुचली
उस अहद-ए-सियासत को मरहूम का ग़म क्यूँ है