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नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
या'नी फिर ज़िंदा नए अहद-ए-वफ़ा से दिल हों
फिर इसी बादा-ए-दैरीना के प्यासे दिल हों
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरी हस्ती शम्अ-ए-हिम्मत के लिए आईना थी
ज़िंदगी तेरी चराग़-ए-मिल्लत-ए-देरीना थी
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
पास था अपने क़ौल का जिस को तू ने कुछ उस का पास किया
आमद-ओ-रफ़्त-ए-देरीना का भूल के भी एहसास किया
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
ख़्वाब-ए-देरीना की ता'बीर बना कर तुझ को
अपनी आँखों के किवाड़ों में मुक़फ़्फ़ल कर लूँ