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नज़्म
सहेली यूँ तो कुछ कुछ साँवले से हैं मिरे साजन
मगर तेरी क़सम बेहद रसीले हैं मिरे साजन
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
अक़ल्लीयत कहीं की हो तह-ए-ख़ंजर ही रहती है
हलाकत-ख़ेज़ हाथों के हज़ारों जब्र सहती है
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
हो तो सकता है किसी देव के जैसे मैं भी
ले उड़ूँ तुझ को कहीं दूर की दुनियाओं में
मोहम्मद ओवैस मालिक
नज़्म
ये इडेन गार्डेन हमदम निगाह-ओ-दिल की जन्नत है
यहाँ हव्वा की रंगीं बेटियाँ हर शाम आती हैं