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नज़्म
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क़हर तो ये है कि काफ़िर को मिलें हूर ओ क़ुसूर
और बेचारे मुसलमाँ को फ़क़त वादा-ए-हूर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सब्र का फल लोग कहते हैं मिलेगा एक दिन
आह कब तक इंतिज़ार-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा करूँ