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नज़्म
दिलावर फ़िगार
नज़्म
कहाँ गया वो ज़माना कि जिस की याद में आज
भुलाए बैठा हूँ ख़ुद को पता नहीं मिलता
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
आग़ोश-ए-वालिदा में पाला था हम को जिस ने
इक पैकर-ए-अदब में ढाला था हम को जिस ने
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
क़हर तो ये है कि काफ़िर को मिलें हूर ओ क़ुसूर
और बेचारे मुसलमाँ को फ़क़त वादा-ए-हूर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कार-ख़ानों के भूके जियालों के नाम
बादशाह-ए-जहाँ वाली-ए-मा-सिवा, नाएब-उल-अल्लाह फ़िल-अर्ज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी ग़म-ज़दा देवता की तरह वाहिमा के
गिल-ओ-ला से ख़्वाबों के सय्याल कूज़े बनाता रहा था
नून मीम राशिद
नज़्म
जो वादा-ए-फ़र्दा पर अब टल नहीं सकते हैं
मुमकिन है कि कुछ अर्सा इस जश्न पे टल जाएँ