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नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
वो जान कि जिस से जी ग़श हो सौ नाज़ से आ झनकारी हो
दिल देख 'नज़ीर' उस की छब को हर आन अदा पर वारी हो
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
याँ तक तो उन पे लाती है नाचारी शब-बरात
वारिस हैं जिन के जीते वो मुर्दे भी आन कर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मेरी नानी अच्छी नानी मुझ पर वारी जाती थी
मेरे लाल को आवे निन्दिया हौले-हौले गाती थी
अताउर्रहमान तारिक़
नज़्म
महज़ ख़ूब-सूरत औरत कभी न लुभा सकी मुझे
न ही मुतअस्सिर कर सकी मुझे कम-शक्ल दानिश-वरी