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नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
तू और ज़ेब-ओ-ज़ीनत-ए-अलवान-ए-ज़र-निगार
क्या तेरे क़स्र-ए-नाज़ की हिलती नहीं ज़मीं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
नीली मौजों से पशेमाँ हुईं ज़ुल्फ़ें काली
हुस्न-ओ-आराइश-ओ-ज़ीनत से बढ़ी ख़ुश-हाली
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
मुझे क्या अगर मुझ से पहले
ये धरती मिरी प्यारी धरती फ़क़त इक हयूला थी और ज़ीनत-ए-ताक़-ए-निस्याँ थी
महमूद शाम
नज़्म
बर्फ़ की सिल ने मिरे दिल की जगह पा ली है
अब धुँदलके भी नहीं ज़ीनत-ए-चश्म-ए-बे-ख़्वाब
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
हैं जसोधा के लिए ज़ीनत-ए-आग़ोश कहीं
गोपियों के भी तसव्वुर से हैं रू-पोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
तुम्हें गुमाँ है कि ज़ौक़-ए-यक़ीं है वजह-ए-जुमूद
असीर-ए-क़ैद-ए-तिलिस्मात-ए-ईन-ओ-आँ तुम हो
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
वादियों में तू, बयाबानों में तू, बस्ती में तू
रौनक़-ए-हर-महफ़िल ओ ज़ीनत-दह-ए-हर-अंजुमन