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नज़्म
कभी राहत कभी आज़ार-ए-जाँ मालूम होती है
मोहब्बत एक पैहम इम्तिहाँ मालूम होती है
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
तन्हा हसीन हयात के साग़र को क्या करूँ
साथी नहीं तो बादा-ए-कौसर को क्या करूँ
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
चमन की सर-ज़मीं अपनी चमन का आसमाँ अपना
बनाएँ किस लिए इक शाख़-ए-गुल पर आशियाँ अपना
राम लाल वर्मा हिंदी
नज़्म
गुम्बदों को धूप की लम्बी ज़बानें खा गई हैं
सहन में ज़ंजीर से जकड़े हुए ख़ारिश-ज़दा
शरवण कुमार वर्मा
नज़्म
तब-ए-मशरिक़ के लिए मौज़ूँ यही अफ़यून थी
वर्ना क़व्वाली से कुछ कम-तर नहीं इल्म-ए-कलाम