aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "zadan"
वो बला आई गई है दिल पे बनअब नहीं है हाए जा-ए-दम-ज़दन
मिटा दी चश्म-ए-ज़दन में हज़ार की सूरतनज़र पड़ी न किसी बे-क़रार की सूरत
तख़्ते गुलों के चश्म-ए-ज़दन में खिला चलीख़ुश्बू के और शमीम के दरिया बहा चली
चश्म-ए-ज़दन में कर देता है रेज़ा रेज़ावा'दा करते वक़्त हमेशा मैं ये सोचूँ
खोलेगा सियासत की गिरह चश्म-ज़दन मेंलेकिन दम-ए-लेक्चर बड़ी उलझन में मिलेगा
दम-ज़दन मेंयक-ब-यक उग आए अपने आप ही
दम-ज़दन में नज़र लुढ़कती हैतिरे रुख़्सार तमतमाते हैं
और सदहा जाँ-निसारान-ए-वतनतुझ पे क़ुर्बां हो गए दर दम ज़दन
लाहौर से शीराज़ तकचश्म-ए-ज़दन में कट गए
आफ़ात का तूफ़ान मुड़ा जब मिरी जानिबताराज किया घर को मिरे चश्म-ज़दन में
तू जो चाहे तो उठे सीना-ए-सहरा से हबाबरह-रव-ए-दश्त हो सैली-ज़दा-ए-मौज-ए-सराब
आसमाँ-गीर हुआ नारा-ए-मस्ताना तिराकिस क़दर शोख़-ज़बाँ है दिल-ए-दीवाना तिरा
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरेबोल ज़बाँ अब तक तेरी है
आदमी तो तुम भी हो आदमी तो हम भी हैंआदमी ज़बाँ भी है आदमी बयाँ भी है
तहमतन यानी 'रुस्तम' था गिरामी 'साम' का वारिसगिरामी 'साम' था सुल्ब-ए-नर-ए-'मानी' का ख़ुश-ज़ादा
इसी लिए तो जो लिक्खा तपाक-ए-जाँ से लिखाजभी तो लोच कमाँ का ज़बान तीर की है
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारीसदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा
हक़ीक़त हुई जैसे मुझ पर अयाँक़लम बन गया है ख़ुदा की ज़बाँ
ज़बाँ पर ज़ाइक़ा आता था जो सफ़्हे पलटने काअब उँगली क्लिक करने से बस इक
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