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नज़्म
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम रूठ चुके दिल टूट चुका अब याद न आओ रहने दो
इस महफ़िल-ए-ग़म में आने की ज़हमत न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
क़ब्र की ज़ुल्मत में है इन आफ़्ताबों की चमक
जिन के दरवाज़ों पे रहता है जबीं-गुस्तर फ़लक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सर-ए-मक़्तल चलो बे-ज़हमत-ए-तक़सीर बिस्मिल्लाह
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अलग रह कर ख़याल-ए-ज़हमत ओ एहसास-ए-राहत से
लगे हैं अपनी अपनी फ़िक्र में बा-ख़ातिर-ए-यकसू
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
इस कुम्बा-परवर दुनिया में बेकस की हिमायत कौन करे
जब ग़ासिब मुंसिफ़ बन जाएँ इंसाफ़ की ज़हमत कौन करे
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
नज़्म
किसी के हाथ में पान और किसी के हाथ में हार
हर इक ये कहता है ज़हमत बहुत हुई सरकार