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नज़्म
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
कार-फ़रमा फिर मिरा ज़ौक़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी है आज
फिर नफ़स का साज़-ए-गर्म-ए-शो'ला-अफ़्शानी है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है
रंग की गहराई नापी है फूल की ख़ुशबू तोली है
हुरमतुल इकराम
नज़्म
जसारत ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा की पैदा कर निगाहों में
नुमूद-ए-हुस्न के अनवार पैमानों में रहते हैं
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
मुझे होश ही नहीं कुछ कि मैं शाद हूँ कि 'नाशाद'
है सुरूर-ए-मय से बढ़ कर मिरा ज़ौक़-ए-शाइ'राना
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
तुम्हीं बताओ कि दोनों में कौन अफ़ज़ल है
हमारा ज़ौक़-ए-यक़ीं या तुम्हारी दानाई
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
आँख वक़्फ़-ए-दीद थी लब माइल-ए-गुफ़्तार था
दिल न था मेरा सरापा ज़ौक़-ए-इस्तिफ़्सार था