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नज़्म
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ
चश्मा-ए-आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुतमइन है तू परेशाँ मिस्ल-ए-बू रहता हूँ मैं
ज़ख़्मी-ए-शमशीर-ए-ज़ौक़-ए-जुस्तुजू रहता हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
गिरामी-क़द्र भी ज़ी-तमकनत भी मोहतरम भी हैं
तब-व-ताब-ए-चमन भी ज़ौक़-ए-तमकीन-ए-बहाराँ भी