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नज़्म
ये चर्ख़-ए-जब्र के दव्वार-ए-मुमकिन की है गिरवीदा
लड़ाई के लिए मैदान और लश्कर नहीं लाज़िम
जौन एलिया
नज़्म
फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई
नीम-शब की ख़ामुशी में ज़ेर-ए-लब गाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ऐ 'ज़ेब' खवय्या ही अपने हैं उन की लुग़त से ना-वाक़िफ़
हर बहर से मौजों की सूरत उठती हुई कुछ आवाज़ें
ज़ेब उस्मानिया
नज़्म
मौजज़न जू-ए-शफ़क़ है इस तरह ज़ेर-ए-सहाब
जिस तरह रंगीन शीशों में झलकती है शराब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दिल मसर्रत की फ़रावानी से दीवाना है आज
देखना ये कौन आख़िर ज़ेब-ए-काशाना है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये क्या मुमकिन नहीं तू आ के ख़ुद अब इस का दरमाँ कर
फ़ज़ा-ए-दहर में कुछ बरहमी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं को हिनाई उँगलियों से मत सँभाल
खुल चुका है मेरी नज़रों पर तेरा राज़-ए-जमाल
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
मशीं पर हाल-ए-दिल कहने का क्यों इसरार करते हो
मुक़द्दस राज़ क्यों 'उर्यां सर-ए-बाज़ार करते हो
तौक़ीर चुग़ताई
नज़्म
उठ जा नज़र से मेरी हाँ ऐ हिजाब-ए-हस्ती
हुस्न-ए-अज़ल निहाँ है ज़ेर-ए-नक़ाब-ए-हस्ती