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नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
यहीं हम-रंग-ए-गुल-हा-ए-हसीं रहती थी 'रेहाना'
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मेरी तख़्ईल में है एक जहान-ए-बेदार
दस्तरस में मिरी नज़्ज़ारा-ए-गुल-हा-ए-चमन
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
रंग-ए-गुल-हा-ए-गुलिस्तान-ए-वतन तुम से है
सोरिश-ए-नारा-ए-रिंदान-ए-वतन तुम से है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उस का जल्वा है अयाँ गुल-हा-ए-रंगा-रंग से
सब्ज़े में शाख़ों में घर उस ने किया सौ ढंग से
हामिद हसन क़ादरी
नज़्म
ऐ गुल-ए-तर किस क़दर दिलकश है नज़्ज़ारा तिरा
हामिल-ए-हुस्न-ए-अज़ल है क़ल्ब-ए-सी-पारा तिरा
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
बहार-ए-हुस्न जवाँ-मर्ग सूरत-ए-गुल-ए-तर
मिसाल-ए-ख़ार मगर उम्र-ए-दर्द-ए-इश्क़ दराज़
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
सालहा बे-दस्त-ओ-पा हो कर बुने हैं तार-हा-ए-सीम-ओ-ज़र
उन के मर्दों के लिए भी आज इक संगीन जाल
नून मीम राशिद
नज़्म
तू खिलाता है नए गुल जो रवाँ होता है
रंग ये शाख़-ए-गुल-ए-तर में कहाँ होता है