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नज़्म
अपनी दुनिया आप पैदा कर अगर ज़िंदों में है
सिर्र-ए-आदम है ज़मीर-ए-कुन-फ़काँ है ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अपने आक़ाओं की मंशा थी मशिय्यत उन की
गर वो ज़िंदा थे तो ज़िंदों में वो शामिल कब थे
अली अकबर नातिक़
नज़्म
(किस तरह साहिबान-ए-करामात बर्ज़ख़ तो बर्ज़ख़
शर-अंगेज़ ज़िंदों की रूहें बुलाने पे क़ादिर