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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
वो मेरे आसमाँ पर अख़्तर-ए-सुब्ह-ए-क़यामत है
सुरय्या-बख़्त है ज़ोहरा-जबीं है माह-ए-तलअत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
शफ़क़ के नूर से रौशन हैं मेहराबें फ़ज़ाओं की
सुरय्या की जबीं ज़ोहरा का आरिज़ तिम्तिमाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
ताज़ा-दम भी हूँ मगर फिर ये तक़ाज़ा क्यूँ है
हाथ रख दे मिरे माथे पे कोई ज़ोहरा-जबीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं दुनिया की उन ज़ोहरा-जबीनों से
हुई जिन से न मेरे शौक़-ए-रुस्वा की पज़ीराई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
माह-पारों का हदफ़ ज़ोहरा-जबीनों का शिकार
नग़्मा-पैरा ओ नवासंज ओ ग़ज़ल-ख़्वाँ हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़िक्र जिस का ज़ोहरा-ओ-परवीं के काशाने में है
वो सनम भी आज अपने ही सनम-ख़ाने में है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो लाख हिलालों से भी हसीं कैसी ज़ोहरा कैसी परवीं
इक रोटी का टुकड़ा जो कहीं मिल जाए मुझे बाज़ारों में