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नज़्म
आमद-ए-सुब्ह के, महताब के, सय्यारों के गीत
तुझ से मैं हुस्न-ओ-मोहब्बत की हिकायात कहूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जीनी पड़ती हैं कई ज़िंदगियाँ एक हयाती में मुझे
मेरा किरदार बदल जाता है हर रोज़ नई सीट पर
गुलज़ार
नज़्म
हिकायात-ए-शीरीन-ओ-तल्ख़ उन की, उन के दरख़्शाँ जराएम
जो सफ़्हात-ए-तारीख़ पर कारनामे हैं, उन के अवामिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जिन को ममनूआ ज़मीनों की हिकायात कहा जाता है
तीरगी पर जिसे लिक्खी हुई वो रात कहा जाता है
बुशरा एजाज़
नज़्म
चराग़-ए-दैर-ओ-हरम से किसी का घर न जले
न कोई फिर से हिकायात-ए-रफ़्तगाँ लिक्खे
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
नज़्म
मुझ में इक हारे सिकंदर के सिवा कुछ भी न देख
मेरी सीरत में फ़रोज़ाँ सी हिकायात न देख