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नज़्म
बद-बख़्त फ़ज़ाएँ किस की हैं बरबाद नशेमन किस के हैं
कुछ हम भी सुनें हम को भी सुना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
फ़ज़ाएँ गूँजती हैं अब भी उन वहशी तरानों से
अख़्तर शीरानी
नज़्म
फ़ाक़ा-मस्ती में बिखरते हुए सारे रिश्ते
तंग-दस्ती के सबब सारी फ़ज़ाएँ बेहाल
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मैं इक तारीख़ हूँ और मेरी जाने कितनी फ़सलें हैं
मिरी कितनी ही फ़रएँ हैं मिरी कितनी ही असलें हैं
जौन एलिया
नज़्म
मिरी 'सलमा' मुझे ले चल तू उन रंगीं बहारों में!
वो दोशीज़ा फ़ज़ाएँ जन्नतों का है गुमाँ जिन पर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
फ़िरदौस का नमूना अपना हो कुंज-ए-दिलकश
सारे जहाँ की जिस में हों जल्वा-गर फ़ज़ाएँ