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नज़्म
मैं ने काल को तोड़ के लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी ख़ुदी को तुम ने चंद चमतकारों से मारना चाहा
गुलज़ार
नज़्म
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कैसा सुहाना कैसा सुंदर प्यारा देस हमारा है
दुख में सुख में हर हालत में भारत दिल का सहारा है
अफ़सर मेरठी
नज़्म
मैं ने कुछ फ़िल्मों के सहारे फिर से हँसना सीख लिया है
मैं ने ख़ुद को वक़्त दिया है
बालमोहन पांडेय
नज़्म
बुलबुल ऐसे प्यारे नग़्मे किस से सीख के आती है
सब्ज़ा कैसे जी उठता है तितली क्यूँ मर जाती है
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
सच है अब हम अपनी अपनी दुनियाओं में गुम रहते हैं
ये भी सच हम दोनों बिल्कुल तन्हा जीना सीख गए हैं
अंबरीन हसीब अंबर
नज़्म
सिख न ईसाई न हिन्दू न मुसलमान है तू
तेरा ईमान ये कहता है कि इंसान है तू