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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आगही पर ग़ज़लें

आगही उस ख़ज़ाने की चाभी

है जहाँ से सूफ़ी संतों से लेकर फ़लसफ़ियों ने भी बहुत कुछ हासिल किया है। इल्म और आगही की दुनिया मे इन्क़िलाब के इस दौर से पहले भी शायरों ने इस की अहमियत को समझा और तस्लीम किया है। यह आगही अपने वजुद से मुलअल्लिक़ भी हो सकती है और दुनिया के बारे में भी। आगही शायरी की एक झलक पेश हैः

मा'रिफ़त के लिए आगही के लिए

रहबर ताबानी दरियाबादी

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