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रद करें डाउनलोड शेर

मानवीय मूल्य पर कहानियाँ

एक क़त्ल की कोशिश

इक़बाल मजीद

मन की मन में

औरत के हसद और डाह के जज़्बे पर मब्नी कहानी है। माधव बहुत ही शरीफ़ इंसान था जो दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। वो एक बेवा अम्बो को बहन मान कर उसकी मदद करता था, जिसे उसकी बीवी कलकारनी नापसंद करती थी और उसे सौत समझती थी। ठीक मकर संक्रांत के दिन माधव कलकारनी से बीस रुपये लेकर जाता है कि उससे पाज़ेब बनवा लाएगा लेकिन उन रुपयों से वो अम्बो का क़र्ज़ लाला को अदा कर देता है। इस जुर्म के नतीजे में कलकारनी रात में माधव पर घर के दरवाज़े बंद कर लेती है और माधव निमोनिया से मर जाता है। मरते वक़्त वो कलकारनी को वसीयत करता है कि वो अम्बो का ख़्याल रखे लेकिन अगले बरस संक्रांत के दिन जब अम्बो उसके यहाँ आती है तो वो सौत और मनहूस समझ कर उसे घर से भगा देती है और फिर अम्बो ग़ायब ही जाती है।

राजिंदर सिंह बेदी

क्वारंटीन

कहानी में एक ऐसी वबा के बारे में बताया गया है जिसकी चपेट में पूरा इलाक़ा है और लोगों की मौत निरंतर हो रही है। ऐसे में इलाके़ के डॉक्टर और उनके सहयोगी की सेवाएं प्रशंसनीय हैं। बीमारों का इलाज करते हुए उन्हें एहसास होता है कि लोग बीमारी से कम और क्वारंटीन से ज़्यादा मर रहे हैं। बीमारी से बचने के लिए डॉक्टर खु़द को मरीज़ों से अलग कर रहे हैं जबकि उनका सहयोगी भागू भंगी बिना किसी डर और ख़ौफ़ के दिन-रात बीमारों की सेवा में लगा हुआ है। इलाक़े से जब महामारी ख़त्म हो जाती है तो इलाक़े के गणमान्य की तरफ़ से डॉक्टर के सम्मान में जलसे का आयोजन किया जाता है और डॉक्टर के काम की तारीफ़ की जाती है लेकिन भागू भंगी का ज़िक्र तक नहीं होता।

राजिंदर सिंह बेदी

गुरमुख सिंह की वसीयत

सरदार गुरूमुख सिंह को अब्द-उल-हई जज ने एक झूठे मुक़द्दमे से नजात दिलाई थी। उसी एहसान के बदले में गुरूमुख सिंह ईद के दिन जज साहब के यहाँ सेवइयाँ लेकर आता था। एक साल जब दंगों ने पूरे शहर में आतंक फैला रखा था, जज अबदुलहई फ़ालिज की वजह से मृत्यु शैया पर थे और उनकी जवान बेटी और छोटा बेटा हैरान परेशान थे कि इसी ख़ौफ़ व परेशानी के आलम में सरदार गुरूमुख सिंह का बेटा सेवइयाँ लेकर आया और उसने बताया कि उसके पिता जी का देहांत हो गया है और उन्होंने जज साहब के यहाँ सेवइयाँ पहुँचाने की वसीयत की थी। गुरूमुख सिंह का बेटा जब वापस जाने लगा तो बलवाइयों ने रास्ते में उससे पूछा कि अपना काम कर आए, उसने कहा कि हाँ, अब जो तुम्हारी मर्ज़ी हो वो करो।

सआदत हसन मंटो

क़दीम मा'बदों का मुहाफ़िज़

सय्यद मोहम्मद अशरफ़

गुलामी

यह एक रिटायर्ड आदमी की ज़िंदगी की कहानी है। पोलहू राम सहायक पोस्ट मास्टर के पद से रिटायर हो कर घर आता है तो पहले पहल तो उसकी ख़ूब आव भगत होती है, लेकिन रफ़्ता-रफ़्ता उसके भजन, घर के कामों में दख़ल-अंदाज़ी की वजह से लड़के, बहू और पत्नी तक उससे ऊब जाते हैं। एक दिन जब वो पेंशन लेने जाता है तो उसे नोटिस बोर्ड से पता चलता है कि डाकख़ाने को एक्स्ट्रा डिपार्टमेंटल डाकख़ाने की ज़रूरत है जिसकी तनख़्वाह पच्चीस रुपये है। पोलहू राम यह नौकरी कर लेता है लेकिन काम के दौरान जब उस पर दमा का दौरा पड़ता है तो लोग दया करते हुए कहते हैं, डाकख़ाना क्यों नहीं इस ग़रीब बूढ़े को पेंशन दे देता?

राजिंदर सिंह बेदी

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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