ख़ुद-अज़िय्यती पर ग़ज़लें

यूँ तो ब-ज़ाहिर अपने

आप को तकलीफ़ पहुँचाना और अज़िय्यत में मुब्तला करना एक ना-समझ में आने वाला ग़ैर फ़ित्री अमल है, लेकिन ऐसा होता है और ऐसे लम्हे आते हैं जब ख़ुद अज़िय्यती ही सुकून का बाइस बनती है। लेकिन ऐसा क्यूँ? इस सवाल का जवाब आपको शायरी में ही मिल सकता है। ख़ुद अज़िय्यती को मौज़ू बनाने वाले अशआर का एक इंतिख़ाब हम पेश कर रहे हैं।

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