aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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माज़ी पर ग़ज़लें

तख़्लीक़ी ज़हन नास्टेलजाई

कैफ़ितों में घिरा होता है वो बार बार अपने माज़ी की तरफ़ लौटता है, उसे कुरेदता है, अपनी बीती हुई ज़िंदगी के अच्छे बुरे लमहों की बाज़ियाफ़्त करता है। आप इन शेरों में देखेंगे कि माज़ी कितनी शिद्दत के साथ ऊद करता है और किस तरीक़े से गुज़री हुई ज़िंदगी हाल के साथ क़दम से क़दम मिला कर चलने लगती है। हमारे इस इन्तिख़ाब को पढ़ कर आप अपने माज़ी को एक नए तरीक़े से देखने, बरतने और याद करने के अहल होंगे।

नए देस का रंग नया था

नासिर काज़मी

जादू थी सेहर थी बला थी

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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