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प्रवास पर कहानियाँ

नंगी आवाज़ें

"इस कहानी में शहरी ज़िंदगी के मसाइल को उजागर किया गया है। भोलू एक मज़दूर पेशा आदमी है। जिस बिल्डिंग में वो रहता है उसमें सारे लोग रात में गर्मी से बचने के लिए छत पर टाट के पर्दे लगा कर सोते हैं। उन पर्दों के पीछे से आने वाली मुख्तलिफ़ आवाज़ें उसके अंदर जिन्सी हैजान पैदा करती हैं और वो शादी कर लेता है। लेकिन शादी की पहली ही रात उसे महसूस होता है कि पूरी बिल्डिंग के लोग उसे देख रहे हैं। इसी उधेड़ बुन में वो बीवी की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता और जब बीवी की ये बात उस तक पहुँचती है कि उसके अंदर कुछ कमी है तो उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और फिर वो जहाँ टाट का पर्दा देखता है उखाड़ना शुरू कर देता है।"

सआदत हसन मंटो

आवारा-गर्द

दुनिया की सैर पर निकले एक यूरोपीय जर्मन लड़के की कहानी। वह पाकिस्तान से भारत आता है और बंबई में एक सिफ़ारिशी मेज़बान का मेहमान बनता है। बंबई में वह कई दिन रुकता है, लेकिन सारा सफ़र पैदल ही तय करता है। रात को खाने की मेज़ पर अपनी मेज़बान से वह यूरोप, जर्मन, द्वितीय विश्व युद्ध, नाज़ी और अपने अतीत के बारे में बात करता है। भारत से वह श्रीलंका जाता है जहाँ सफ़र में एक सिंघली बौद्ध उसका दोस्त बन जाता है। वह दोस्त उसे नदी में नहाने की दावत देता है और खु़द डूबकर मर जाता है। लंका से होता हुआ है वह सैलानी लड़का वियतनाम जाता है। वियतनाम में जंग जारी है और जंग की एक गोली उस नौजवान यूरोपीय आवारागर्द को भी लील जाती है।

क़ुर्रतुलऐन हैदर

पतझड़ की आवाज़

यह कहानी की मरकज़ी किरदार तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी के तजुर्बात और ज़ेहनियत की अक्कासी करती है। तनवीर एक अच्छे परिवार की सुशिक्षित लड़की है लेकिन ज़िंदगी जीने का फ़न उसे नहीं आता। उसकी ज़िंदगी में एक के बाद एक तीन मर्द आते हैं। पहला मर्द खु़श-वक़्त सिंह है जो ख़ुद से तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी में दाख़िल होता है। दूसरा मर्द फ़ारूक़, पहले खु़श-वक़्त सिंह के दोस्त की हैसियत से उससे परिचित होता है और फिर वही उसका सब कुछ बन जाता है। इसी तरह तीसरा मर्द वक़ार हुसैन है जो फ़ारूक़ का दोस्त बनकर आता है और तनवीर फ़ातिमा को दाम्पत्य जीवन की ज़ंजीरों में जकड़ लेता है। तनवीर फ़ातिमा पूरी कहानी में सिर्फ़ एक बार ही अपने भविष्य के बारे में कोई फ़ैसला करती है, खु़श-वक़्त सिंह से शादी न करने का। और यही फ़ैसला उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित होता है क्योंकि वह अपनी ज़िंदगी में आए उस पहले मर्द खु़श-वक़्त सिंह को कभी भूल नहीं पाती।

क़ुर्रतुलऐन हैदर

क़ादिरा क़साई

अपने ज़माने की एक ख़ूबसूरत और मशहूर वेश्या की कहानी। उसके कोठे पर बहुत से लोग आया करते थे। सभी उससे मोहब्बत का इज़हार किया करते थे। उनमें एक ग़रीब शख़्स भी उससे मोहब्बत का दावा करता था। वेश्या ने उसकी मोहब्बत को ठुकरा दिया। वेश्या के यहाँ एक बेटी हुई। वह भी बहुत ख़ूबसूरत थी। जिन दिनों उसकी बेटी की नथ उतरने वाली थी उन्हीं दिनों देश का विभाजन हो गया। इसमें वेश्या मारी गई और उसकी बेटी पाकिस्तान चली गई। यहाँ भी उसने अपना कोठा जमाया। जल्द ही उसके कई चाहने वाले निकल आए। वह जिस शख़्स को अपना दिल दे बैठी थी वह एक क़ादिरा कसाई था, जिसे उसकी मोहब्बत की कोई ज़रूरत नहीं थी।

सआदत हसन मंटो

हरनाम कौर

अपने ज़माने में ताक़त और अपने बल के चलते मशहूर रहे एक सिख जट की कहानी। अब उसके पास केवल एक बेटा बहादुर सिंह है जिसकी परवरिश बीवी की मौत के बाद उसकी बहन ने की थी। मगर बहादुर सिंह में वह बात नहीं थी जो निहाल सिंह चाहता था। वह उसकी शादी को लेकर परेशान था। मगर बहादुर सिंह गाँव की किसी भी लड़की में दिलचस्पी ही नहीं लेता था। आख़िर में निहाल सिंह ने विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने वाले काफ़िले से बहादुर सिंह के लिए एक लड़की लूट ली। उसने उसे बहादुर सिंह के कमरे में डाल कर दरवाज़ा बंद कर दिया। मगर जब उसने सुबह दरवाज़ा खोला तो सामने बहादुर सिंह सूट-सलवार पहने बैठा था और क़ाफ़िले वाली लड़की चारपाई के नीचे से निकल कर बाहर भाग गई।

सआदत हसन मंटो

मालकिन

उस हवेली की पूरे इलाके में बड़ी ठाट थी। हर कोई उसके आगे सिर झुका कर चलता था। लेकिन विभाजन ने सब कुछ बदल दिया था और फिर उसके बाद 1950 के सैलाब ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। उसके बाद हवेली को लेकर हुई मुक़दमेबाज़ी ने भी मालकिन को किसी क़ाबिल न छोड़ा। मालकिन का पूरा ख़ानदान पाकिस्तान चला गया था। वहाँ से उनके एक चचा-ज़ाद भाई ने उन्हें बुलवा भी भेजा था लेकिन मालकिन ने जाने से मना कर दिया। वह अपना सारा काम चौधरी गुलाब से करा लिया करती थीं। बदलते वक़्त के साथ ऐसा समय भी आया कि हवेली की बची-खुची शान-ओ-शौकत भी जाती रही और वह किसी खंडहर में तब्दील हो गई। नौबत यहाँ तक आ गई कि मालकिन ने गुज़ारा करने के लिए कुर्ते सीने का काम शुरू कर दिया। इस काम में चौधरी गुलाब उनकी मदद करता है। लेकिन इस मदद को लोगों ने अपने ही तरह से लिया और दोनों को बदनाम करने लगे।

क़ाज़ी अबदुस्सत्तार

दो सारस की ओडेसी

यह युद्ध विरोधी और प्रवासन पर एक चुभता हुआ व्यंग्य है। दुनिया पर युद्ध के बादल मंडला रहे थे जब झील की सतह पर खड़े दो सारसों ने समय से पहले साइबेरिया लौटने का फ़ैसला किया। दोनों ने अपने पर फैलाए, टांगें समेटीं और आसमान की तरफ़ उड़ गए और इसके साथ ही शुरू होती है शहरों शहर उड़ान की वो दास्तान। जब वो बदबूदार धुंओं में उड़ते हुए देख रहे थे किस तरह घर जलाए जा रहे हैं, लोगों का क़त्ल-ए-आम हो रहा है, निहत्ते मारे जा रहे हैं और उस नर सारस का कहना था कि ये सब इसलिए था क्योंकि दुनिया में युद्ध के हथियार बहुत ज़्यादा बेचे जा चुके हैं और अब एक बड़े युद्ध का होना लाज़िमी है ताकि ये हथियार ख़त्म हों वर्ना समुंदर पार हथियार बनाने के सारे कारख़ाने बंद हो जाएंगे।

सिद्दीक आलम

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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