राज़ पर दोहे

ज़िन्दगी में बहुत कुछ

ऐसा होता है जिसे इन्सान औरों से तो क्या ख़ुद से भी पोशीदा रखना चाहता है। ऐसे राज़ को सीने में छुपाए रखने की मुसलसल कोशिशें शायरी में भी अलग-अलग सूरतों में सामने आती रही हैं। यह राज़ अगर आशिक़ के सीने में हो तो मसअला और संगीन हो जाता है। आइये नज़र डालते हैं रेख़्ता के इस इन्तिख़ाब परः

कुछ कहने तक सोच ले बद-गो इंसान

सुनते हैं दीवारों के भी होते हैं कान

मख़मूर सईदी

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