aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शब्दार्थ
ऐ मसीहा कभी तू भी तो उसे देखने आ
तेरे बीमार को सुनते हैं कि आराम नहीं
"बात क़िस्मत की तो कुछ ऐ दिल-ए-नाकाम नहीं" ग़ज़ल से की कौसर नियाज़ी
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