aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शब्दार्थ
हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता
अगर मर मर के ज़िंदा कोहकन होता तो क्या होता
"फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता" ग़ज़ल से की अफ़सर इलाहाबादी