Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

बाबा रतन हिंदी

अशफ़ाक़ अहमद

बाबा रतन हिंदी

अशफ़ाक़ अहमद

MORE BYअशफ़ाक़ अहमद

    हमारे यहां क़रीब ही भारत में एक जगह है जिसे बठिंडा कहते हैं। सदियों पहले इस शहर में रेत के मैदाँ में शाम को नौजवान इकट्ठे होते थे और अपने उस ज़माने की ( बहुत अर्सा बहुत सदियां पहले की बात कर रहा हूँ ) खेलें खेलते थे।

    एक दफ़ा कहानियां कहते कहते किसी एक नौजवान लड़के ने अपने साथियों से ये ज़िक्र किया कि इस धरती पर एक अवतार आया है - लेकिन हमें पता नहीं कि वो कहाँ है? उसके एक साथी रतन नाथ ने कहा, तुझे जगह का पता नहीं है?उसने कहा, मुझे मालूम नहीं लेकिन ये बात दुनिया वाले जान गए हैं कि एक अवतार इस धरते पे तशरीफ़ लाया है। अब रतन नाथ के दिल में खुद बुद शुरू हो गई कि वो कौन सा इलाक़ा है और किधर ये अवतार आया है और मेरी ज़िंदगी में ये कितनी ख़ुशक़िस्मती की बात होगी और मैं कितना ख़ुशक़िस्मत हूँगा अगर अवतार दुनिया में मौजूद है और मैं उस से मिलूँ और अगर मिला जाये तो ये बहुत कमज़ोरी और मुरादी की बात होगी। चुनांचे उसने इर्द-गिर्द से पता किया, कुछ बड़े बुज़ुर्गों ने बताया कि वो अरब में आया है और अरब यहां से बहुत दूर है, वो रात को लेट कर सोचने लगा, बंदा क्या अरब नहीं जा सकता? अब वहां जाने के ज़राए तो उसके पास थे नहीं लेकिन उसका तहय्या पक्का और पुख़्ता हो गया। उसने बात की और कोई ऐलान ही किया। कोई किताब रिसाला नहीं पढ़ा बल्कि अपने दिल के अंदर उस देवता का रूप उतार लिया कि मैंने उसकी ख़िदमत में ज़रूर हाज़िर होना है और मैंने ये ख़ुशक़िस्मत आदमी बनना है। वो चलता गया, चलता गया, रास्ता पूछता गया और लोग उसे बताते गए।

    कुछ लोगों ने उसे मेहमान भी रखा होगा लेकिन हमारे पास उसकी हिस्ट्री मौजूद नहीं है। वो चलता चलता महीनों की मंज़िलें हफ़्तों में तय करता मक्का शरीफ़ पहुंच गया। ग़ालिबन ईरान के रास्ते से और अब वो वहां तड़पता फिरता है कि मैंने सुना है कि एक अवतार आया है। अब कुछ लोग उसकी बात को लफ़्ज़ी तौर पर तो नहीं समझते होंगे। लेकिन उसकी तड़प से अंदाज़ा ज़रूर लगाया होगा, किसी ने उसे बताया होगा कि वो अब यहां नहीं है बल्कि यहां से आगे तशरीफ़ ले जा चुके हैं और उस शहर का नाम मदीना है। उसने कहा मैंने इतने हज़ारों मील का सफ़र किया है ये मदीना कौनसा दूर है, में ये छ: सौ किलोमीटर भी कर लूंगा। वो फिर चल पड़ा और आख़िरकार मदीना मुनव्वरा पहुंच गया। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं और कहीं भी इसका ज़िक्र उस तफ़सील के साथ नहीं आता जिस तरह मैं अर्ज़ कर रहा हूँ।

    शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रह. ने अपनी किताब में एक जुमला लिखा है कि बाबा रतन हिन्दी हुज़ूर नबी करीम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, फिर मालूम नहीं कि उसका क्या हुआ। लेकिन ग़ालिब गुमान है और अक़ल कहती है और हम अंदाज़े से यक़ीन की मंज़िल तक पहुंच सकते हैं कि वो मदीना शरीफ़ में हुज़ूर नबी करीम की ख़िदमत में रहा और हुज़ूर के पसंदीदा लोगों में से था। अब वो किस ज़बान मैं उनसे बात करते होंगे कैसे राब्ते करते होंगे और रतन किस तरह से मदीना शरीफ़ में ज़िंदगी बसर करता होगा? कहाँ रहता होगा उसका हमें कुछ मालूम नहीं है लेकिन वो रहता वहीं था और वो कब तक वहां रहा उसके बारे में भी लोग नहीं जानते। उसकी तलब थी और उसकी ख़ुशक़िस्मती थी और ख़ुशक़िस्मती हमेशा तलब के वास्ते से पैदा होती है। अगर आपकी तलब हो तो ख़ुशक़िस्मती ख़ुद घर नहीं आती। वो इतने मुअज़्ज़िज़ मेज़बान का मेहमान ठहरा और वहां रहा।

    आपको याद होगा जब रसूल पाक नबी अकरम मदीना शरीफ़ तशरीफ़ ले गए तो वहां की लड़कियों ने ऊंचे टीले पर खड़े हो कर दफ़ पर गाना शुरू कर दिया कि चांद किधर से चढ़ा वो ख़ुशक़िस्मत लोग थे। एक फ़िक्शन राईटर के हवाले से में ये सोचता हूँ कि उस वक़्त कोई ऐसा महकमा पब्लिक सर्विस कमीशन का तो नहीं होगा, उस वक़्त कोई पब्लिक रिलेशन या फोकलोर का इदारा भी नहीं होगा कि लड़कियों से कहा जाये कि तुम टीले पर चढ़ के गाना गाओ। वो कौनसी ख़ुशनसीब लड़की होगी जिसने अपने घर वालों से ये ज़िक्र सुना होगा, रात को बर्तन मांझते या लकड़ियाँ बुझाते हुए कि रसूल अल्लाह तशरीफ़ ला रहे हैं और अंदाज़ा है कि अनक़रीब पहुंच जाएँगे और फिर उसने अपनी सहेलियों से बात की होगी और उन्होंने फ़ैसला किया होगा कि जब वो आएँगे तो हम सारी खड़ी हो कर दफ़ बजाएँगी और गीत गाएँगी।

    अब जब हुज़ूर के आने का वक़्त क़रीब आया होगा तो किसी ने एक दूसरी को बताया होगा कि भागो, चलो, महकमा तो है कोई नहीं कि इत्तिला मिल गए होगी, ये तलब कौनसी होती है, वो ख़ुशनसीब लड़कियां जहां भी होंगी, वो कैसे कैसे दर्जात लेकर बैठी होंगी। इन्होंने ख़ुशी से दफ़ बजा कर जो गीत गाया उसके अलफ़ाज़ ऐसे हैं कि दिल में उतरते जाते हैं। उन्हें आंहुज़ूर को देखकर रोशनी महसूस हो रही है, फिर वो कौनसी जगह थी जिसे बाबा रतन हिन्दी ने क़बूल किया और सारे दोस्तों को छोड़कर उस अरब के रेतीले मैदान में वो अपनी लाठी लेकर चल पड़ा कि मैं तो अवतार से मिलूँगा।

    बहुत से और लोगों ने भी रतन हिन्दी पर रिसर्च की है। एक जर्मन स्कालर भी उनमें शामिल हैं। जब ये सब कुछ में देख चुका और पढ़ चुका तो फिर मेरे दिल में ख़याल आया बाज़ औक़ात ऐसी हिकायतें भी बन जाती हैं लेकिन दिल नहीं मानता था। ये पता चलता था जर्मन रिसर्च से कि वो हुज़ूर के इरशाद पर और उनकी इजाज़त लेकर वापस हिन्दोस्तान गए। हिन्दोस्तान आए तो ज़ाहिर है वो अपने गांव ही गए होंगे और बठिंडा में ही उन्होंने क़ियाम क्या होगा, मेरी सोच भी छोटी है, दर्जा भी छोटा है, लेवल भी छोटा है फिर भी मैंने कहा, अल्लाह तू मेरी मदद कर कि मुझे इस बारे में कुछ पता चल जाये, अब तो पाकिस्तान बन चुका है मैं बठिंडा जा भी नहीं सकता और पूछूँ भी किस से 1400 बरस पहले का वाक़िया है।

    कुछ अर्सा बाद डाक्टर मसऊद से मेरी दोस्ती हो गई। उनसे मिलना मिलाना हो गया। वो घर आते रहे, मिलते रहे, उनके वालिद से भी मुलाक़ात हुई वो किसी ज़माने में स्कूल टीचर रहे थे। एक दिन बातों बातों में डाक्टर मसऊद के वालिद साहिब ने बताया कि मैं काफ़ी साल बठिंडा के गर्वनमेंट हाई स्कूल में हेडमास्टर रहा हूँ। मैंने कहा या अल्लाह ये कैसा बंदा आपने मिलवा दिया, मैंने कहा, आप ये फ़रमाएं मास्टर साहिब कि वहां कोई ऐसे आसार थे कि जिनका ताल्लुक़ बाबा रतन हिन्दी के साथ हो। कहने लगे, उनका बहुत बड़ा मज़ार है वहां पर और वहां बड़े चढ़ावे चढ़ते हैं। हिंदू , मुसलमान औरतें-मर्द आते हैं और तुम्हारा ये दोस्त जो है डाक्टर मसऊद, मेरे घर 13 बरस तक औलाद नहीं हुई, मैं पढ़ा लिखा शख़्स था, ऐसी बातों पर एतबार नहीं करता था जो अनपढ़ करते हैं। लेकिन एक दिन जा कर मैं बाबा रतन हिन्दी के मज़ार पर बड़ा रोया। कुछ मैंने कहा नहीं, कुछ बोला। पढ़े लिखे सियाने बंदों को शिर्क का भी डर रहता है, इसलिए कुछ बोला और मुझे ऐसे ही वहां जा कर बड़ा रोना आगया।

    बाबा रतन हिन्दी की कहानी का मुझे पता था कि ये मदीना तशरीफ़ ले गए थे। मज़ार पर जाने के बाद मैं घर गया। रात को मुझे ख़्वाब आया कि जिसमें हिन्दुस्तानी अंदाज़ के सफ़ेद दाढ़ी वाले बाबा जी आए और कहने लगे, ले अपना काका फड़ ले, ( लो, अपना बच्चा लो ) ये अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिए भेजा है। मैंने कहा, जी ये कहाँ से आगया, मास्टर साहिब ने बताया कि जब मैंने ख़्वाब में वो बच्चा उठाया तो वो वज़नी था।

    मैंने पूछा, बाबा जी आप कौन हैं?

    तो वो कहने लगे, मैं रतन हिन्दी हूँ। क्या ऐसे बेवक़ूफ़ों की तरह रोया करते हैं, सब्र से चलते हैं, लंबा सफ़र करते हैं, हाथ में लाठी रखते हैं और अदब से जाते हैं।

    मास्टर साहिब कहने लगे मुझे सफ़र और लाठी के बारे में मालूम नहीं था कि ये क्या बातें हैं, मैंने उनसे कहा, जी उसका मसालहा मेरे पास है और मुझे यक़ीन हो गया कि वो लड़कियां जो हुज़ूर का इस्तिक़बाल करने के लिए मौजूद थीं वो ख़ुशक़िस्मत थीं।

    हम कुछ मस्रूफ़ हैं। कुछ हमारे दिल और तरफ़ मस्रूफ़ हैं। हम उस सफ़र को इख़्तियार नहीं कर सकते लेकिन सफ़र को इख़्तियार करने की ताँग ( आरज़ू ) ज़रूर दिल में रहनी चाहिए और जब दिल में ये हो जाये पक्का इरादा और तहय्या तो फिर रास्ता ज़रूर मिल जाता है।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए